जातिवाद - एक शैतानी ज़हर
सबसे पहले तो सवाल यह पैदा होता है कि यह आया कहां से ?
इसकी शुरुआत हमारे परिवार और सोसाइटी से ही होती है एक छोटा सा उदाहरण देता हूं इस बात पर ,
यह शायद आपके बचपन में भी हुआ हो जब हम छोटे थे तब कभी अगर पैसे, सिक्का या नोट मुंह में गलती से ले लिया करते थे तो सब चिल्लाकर या प्यार से यह बोलते थे कि बेटा/बेटी पैसे मुंह में नहीं लेते है- बच्चा बोलता है क्यों?
जवाब मिलता है क्युकी यह पैसे टॉयलेट साफ करने वाले और कूड़ा उठाने वाले हाथ में लेते है। आपको पता ही होगा कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते है और बहुत सवाल पूछते है। वो फिर सवाल करता है- कि वो यह काम क्यों करते है? जवाब मिलता है क्युकी यह उनका काम है। बच्चा फिर सवाल करता है-
यह उनका काम क्यों है ?
क्युकी बेटा/बेटी वो नीची जात के लोग होते है वह लोग यही काम करते है।
बच्चा फिर सवाल करता है-
पर वो नीची जात के क्यों है?
बेटा/बेटी यह तो नहीं पता पर यह इन्हीं लोग का काम है।
बच्चे की सोच यही से बदल जाती है। कि कूड़ा उठाना या टॉयलेट साफ करना गंदा काम है तभी तो उनकी लगे हुए हाथ की चीज़ हमे ना तो खानी चाहिए ना मुंह में लेनी चाहिए। यह काम वोही लोग करते है जो नीची जात के होते है। और बड़े होने तक उनके दिमाग में यही बात रहती है। अगर तभी बच्चे को यह बोला जाए कि बेटा/बेटी पैसे इसलिए मुंह में नहीं लेते है क्युकी इसपर सबके हाथ लगते है जिस तरह कीटाणुनाशक साबुन का विज्ञापन टीवी पर दिखाया जाता है उसी तरह से इस बात को भी समझा सकते है कि सबके हाथ लेगेगे तो इस पर कीटाणु बैठ जाते है और अगर तुम इसे मुंह में लोगे तो बीमार हो जाओगे। बच्चे के दिल में नफरत भी हम ही पैदा करते है और प्यार भी हम ही पैदा करते है। और टॉयलेट साफ करना या कूड़ा उठाना कोई छोटा काम नहीं है। यह बात हमे बच्चे को बताना है और हम उसके सवाल का सही जवाब दे।
बात वही आ गई की जात पात हम लोग ही दिमाग़ में डालते है।
क्युकी छोटी उम्र/ छोटा बच्चा एक कोरा कागज़ होता है जिस पर जो लिखोगे वो पूरी उम्र छप जाएगा उसके दिमाग़ पर। इसलिए एक खुशहाल देश के लिए हमे जात - पात को ख़त्म करके, भाई चारे को बढाना पड़ेगा.
सफीर अहमद
@thelostsoul_arts
रामपुर
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